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खुदीराम बोस | Khudiram Bose Biography In Hindi

biographytak by biographytak
February 21, 2021
in Our Hero, स्वतंत्रता सेनानी
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खुदीराम बोस | Khudiram Bose Biography In Hindi

भारत के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास महान वीरों और उनके सैकड़ों साहसिक कारनामों से भरा पड़ा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहुत वीर और बहुत क्रांतिकारी हुए उन्हीं में से एक थे खुदीराम बोस।

यह एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने मात्र 19 वर्ष की आयु में फांसी के फंदों को चूम लिया। खुदीराम बोस एक भारतीय युवा क्रन्तिकारी थे उनकी शहादत ने पूरे देश में क्रांति का एक लहर पैदा कर दिया।

पूरा नाम:- खुदीराम बोस

जन्म:- 3 दिसंबर, 1889

जन्म भूमि:- हबीबपुर, मिदनापुर ज़िला, बंगाल

मृत्यु:- 11 अगस्त, 1908

मृत्यु कारण:-  फाँसी

अभिभावक:- पिता- त्रैलोक्य नाथ बोस, माता- लक्ष्मीप्रिया देवी

नागरिकता:- भारतीय

आंदोलन:- भारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलन

Contents hide
1 ★ खुदीराम बोस का प्रारंभिक जीवन
2 ★ खुदीराम बोस का क्रांतिकारी जीवन
3 ★ किंग्जफोर्ड को मारने की योजना
4 ★ खुदीराम बोस की गिरफ्तारी और फांसी
5 ● खुदीराम बोस से जुड़े कुछ प्रश्न
5.1 ★ खुदीराम बोस का नारा क्या था?
5.2 ★ खुदीराम बोस को फांसी कब हुई?
5.3 ★ सबसे कम उम्र में फांसी की सजा पाने वाला क्रांतिकारी कौन था?
5.4 ★ खुदीराम बोस का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
5.5 ★ भारत का प्रथम शहीद कौन था?

★ खुदीराम बोस का प्रारंभिक जीवन

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को मिदनापुर ज़िले (बंगाल) के हबीबपुर गाँव में हुआ था। खुदीराम बोस जी के पिता का नाम त्रैलोक्य नाथ बोस तथा माता का नाम लक्ष्मीप्रिय देवी था। बचपन में ही खुदीराम बोस के सिर से उनके माता-पिता का साया उतर गया था इसलिए उनका लालन-पालन उनकी बड़ी बहन ने किया।

खुदीराम बोस के मन में देशभक्ति की भावना इतनी प्रबल थी कि उन्होंने स्कूल के दिनों से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया था। सन 1902 और 1903 के दौरान अरविंद घोष और भगिनी निवेदिता ने मेदिनीपुर में कई जन सभाएं की और क्रांतिकारी समूहों के साथ भी गोपनीय बैठकें भी आयोजित की।

खुदीराम बोस भी अपने शहर के उस युवा वर्ग में शामिल थे जो अंग्रेजी हुकुमत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए आन्दोलन में शामिल होना चाहता था। खुदीराम बोस प्रायः अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ होने वाले जलूसों में शामिल होते थे तथा नारे लगाते थे। खुदीराम बोस के मन में अपने देश के प्रति प्रेम इतना कूट-कूट कर भरा था कि उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और देश की आजादी में मर-मिटने के लिए जंग-ए-आज़ादी में कूद पड़े।

★ खुदीराम बोस का क्रांतिकारी जीवन

Twentieth century (बीसवीं शदी) के शुरुआत में स्वतंत्रता आंदोलन की प्रगति को देख अंग्रेजों ने बंगाल के विभाजन की चाल चली जिसका घोर विरोध किया गया। इसी दौरान सन् 1905 ई. में बंगाल विभाजन के बाद खुदीराम बोस स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में कूद पड़े।

“खुदीराम बोस ने अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत सत्येन बोस के नेतृत्व में किया था।”

खुदीराम बोस ने केवल 16 साल की आयु में पुलिस स्टेशनों के पास बम रखा था और सरकारी कर्मचारियों को निशाना बनाया। खुदीराम बोस कुछ समय बाद Revolutionary Party (क्रांतिकारी पार्टी) में शामिल हो गए और ‘वंदे मातरम’ के पर्चे वितरित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साल 1906 में पुलिस ने खुदीराम बोस को दो बार पकड़ा। सन 1906 को सोनार बंगला नामक एक इश्तहार बांटते हुए खुदीराम बोस पकड़े गए पर उन्होंने पुलिस को चकमा देकर वहां से भागने में सफल रहे।

पुलिस स्टेशन के पास बम रखने के मामले में खुदीराम बोस पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया और उन पर Prosecution (अभियोग) चलाया गया परन्तु एक भी गवाह न मिलने के कारण खुदीराम बोस निर्दोष छूट गये। दूसरी बार पुलिस ने खुदीराम बोस को 16 मई को गिरफ्तार किया पर उनका उम्र कम होने के कारण उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।

6 दिसंबर 1907 को खुदीराम बोस ने नारायणगढ़ नामक रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन (Special train) पर हमला किया परन्तु वह गवर्नर वहां से बच निकला। साल 1908 में खुदीराम बोस ने पैम्फायल्ट फुलर और वाट्सन नामक दो अंग्रेज अधिकारियों पर बम से हमला किया लेकिन किस्मत ने उन दोनों का साथ दिया और वो दोनों बच गए।

★ किंग्जफोर्ड को मारने की योजना

जब बंगाल का विभाजन होने वाला था विभाजन के विरोध में लाखों लोग सड़कों पर उतरे। उस विरोध में आये अनेकों भारतीयों को उस समय कलकत्ता के मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ने क्रूर दण्ड दिया। किंग्जफोर्ड क्रान्तिकारियों को ख़ास तौर पर बहुत दण्डित करता था। किंग्जफोर्ड के इस कार्य से खुश होकर अंग्रेजी हुकुमत ने किंग्जफोर्ड की पदोन्नति कर दी और किंग्जफोर्ड को मुजफ्फरपुर जिले का सत्र न्यायाधीश बना दिया।

क्रांतिकारियों को दंडित और किंग्जफोर्ड की पदोन्नति से बौखलाए क्रांतिकारियों ने किंग्जफोर्ड को मारने का निश्चय किया। किंग्जफोर्ड को मारने के लिए खुदीराम बोस और प्रफुल्लकुमार चाकी का चयन हुआ।

इस काम को पूरा करने के लिए खुदीराम बोस और प्रफुल्लकुमार चाकी को मुजफ्फरपुर भेज दिया गया। यहां पहुँचने के बाद इन दोनों ने किंग्जफोर्ड के बंगले और कार्यालय की निगरानी की। 30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्लकुमार चाकी बाहर निकले और किंग्जफोर्ड के बंगले के बाहर खड़े होकर उसके आने का इंतज़ार करने लगे।

तभी उन दोनों को अंधेरे में एक बग्गी के आने की आवाज सुनाई दी। उन दोनों को लगा कि ये किंग्जफोर्ड की बग्गी है और खुदीराम बोस ने अंधेरे में ही आगे वाली बग्गी पर बम फेंक दिया पर उस बग्गी में किंग्जफोर्ड नहीं बल्कि दो यूरोपियन महिलायें थीं जिनकी मौत हो गयी।
बम फटने के कारण वहां अफरा-तफरी मच गई। इस अफरा-तफरी में वे दोनों वहां से नंगे पाँव भागे। भाग-भाग कर खुदीराम बोस बहुत थक गए थे। कुछ दूर चलने के बाद वे वैनी रेलवे स्टेशन पहुंचे और वहां उन्होंने एक चाय वाले से पानी मांगा। खुदीराम बोस को थके और पसीने से लथ-पथ हालत में रेलवे स्टेशन पर मौजूद पुलिस वालों ने देख लिया। उन दोनों पुलिस वालों को खुदीराम बोस पर शक हो गया और बहुत मशक्कत के बाद उन दोनों पुलिस वालों ने खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया। 1 मई को खुदीराम बोस को स्टेशन से मुजफ्फरपुर लाया गया।

उधर प्रफ्फुलकुमार चाकी भी भाग-भाग कर थक गया था। 1 मई को ही त्रिगुनाचरण नामक ब्रिटिश सरकार में कार्यरत एक आदमी ने प्रफ्फुलकुमार चाकी की मदद की और रात को उसे ट्रेन में बैठाया पर रेल यात्रा के दौरान ब्रिटिश पुलिस में कार्यरत एक सब-इंस्पेक्टर को प्रफ्फुलकुमार चाकी पर शक हो गया और उसने मुजफ्फरपुर पुलिस को इस बात की जानकारी दे दी।
जब प्रफ्फुलकुमार चाकी हावड़ा के लिए ट्रेन बदलने के लिए मोकामाघाट स्टेशन पर उतरे तब पुलिस पहले से ही वहां मौजूद थी। अंग्रेजों के हाथों मरने के बजाए प्रफ्फुलकुमार चाकी ने स्वयं को गोली मार ली और शहीद हो गए।

★ खुदीराम बोस की गिरफ्तारी और फांसी

खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर जज के सामने लाया गया। बोस पर मुकदमा चलाया गया और फिर उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी। 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फाँसी दे दी गयी। खुदीराम बोस इतने निडर थे कि वह एक हाथ में गीता लेकर ख़ुशी-ख़ुशी फांसी चढ़ गए। जब वो फांसी पर चढ़ें उस समय उनकी आयु केवल 18 साल और कुछ महीने थी।

उनकी वीरता, निडरता और शहादत ने उनको इतना लोकप्रिय कर दिया कि बंगाल के क्रांतिकारियों और राष्ट्रवादियों के लिए वह और अनुकरणीय हो गए। खुदीराम बोस की फांसी के बाद विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने उनके मृत्यु का शोक मनाया और कई दिन तक स्कूल-कालेज बन्द रहे। इस बीच नौजवानों में एक ऐसी धोती का प्रचलन हो चला था जिसकी किनारी पर खुदीराम बोस लिखा होता था।

● खुदीराम बोस से जुड़े कुछ प्रश्न

★ खुदीराम बोस का नारा क्या था?

> ‘साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ का नारा था।

★ खुदीराम बोस को फांसी कब हुई?

> 11 अगस्त 1908

★ सबसे कम उम्र में फांसी की सजा पाने वाला क्रांतिकारी कौन था?

> खुदीराम बोस। जब उनको फांसी मिला उनकी आयु मात्र 18 साल और कुछ महीने ही था।

★ खुदीराम बोस का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

> खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को  मिदनापुर ज़िले के (बंगाल) हबीबपुर गांव में हुआ था।

★ भारत का प्रथम शहीद कौन था?

> भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जान न्योछावर करने वाले प्रथम सेनानी खुदीराम बोस माने जाते हैं।

Tags: अरविंद घोषखुदीराम बोसप्रफुल्लकुमार चाकीबंगालभारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलनसत्येन बोस
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