पूरा नाम:- गणेशशंकर विद्यार्थी
जन्म:- 26 अक्टूबर, 1890
जन्म भूमि:- प्रयाग, उत्तर प्रदेश
अभिभावक:- पिता-जयनारायण, माता- गोमती देवी
पति/पत्नी:- चंद्रप्रकाशवती
कर्म भूमि:- भारत
कर्म-क्षेत्र:- पत्रकार, समाज-सेवी, स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ
मृत्यु:- 25 मार्च, 1931
मृत्यु स्थान:- कानपुर, उत्तर प्रदेश
उनके द्वारा रची मुख्य रचनाएँ:- शेखचिल्ली की कहानियाँ
प्रसिद्धि:- पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी
नागरिकता:- भारतीय
अन्य जानकारी:- गणेश शंकर विद्यार्थी ने केवल 16 साल की आयु में ‘हमारी आत्मोसर्गता’ नामक एक किताब लिख डाली थी। साल 1911 में उस समय भारत के चर्चित समाचार पत्र ‘सरस्वती’ में विद्यार्थी जी का लेख ‘आत्मोसर्ग’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था।

गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ आजाद की लड़ाई के दौर में दंगाई भीड़ के बीच भाई-चारा, प्रेम कायम करने के लिए उन्होंने अपनी जान दे दी। 25 मार्च, 1931 जब उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगे के दौरान हिंसक भीड़ की चपेट में आ जाने से गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी जान गंवा दी।
एक ऐसा मसीहा जिसने आज़ादी की लड़ाई के बीच हुए हिंदू-मुस्लिम के इस दंगे के दौरान भी हजारों लोगों की जान बचाई थी और खुद उनकी जान धार्मिक उन्माद की भेंट चढ़ गया।
★ गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म
गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का जन्म 26 अक्टूबर, 1890 को इलाहाबाद के अतरसुइया मौहल्ले में हुआ था। गणेश शंकर विद्यार्थी जी के पिता जयनारायण गरीब परिवार से थे, वे धार्मिक प्रवित्ति के थे और उसूलों पर चलने वाले इंसान थे।
★ शिक्षा
जयनारायण जी ग्वालियर के मुंगावली में एक स्कूल में प्रधानाध्यापक (Headmaster) थे। गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और अंग्रेजी में हुई। वर्ष 1905 में हाईस्कूल और 1907 में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में प्रवेश परीक्षा (Entrance examination) पास करने के बाद जब उन्होंने इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला में दाखिला लिया, तो उनका झुकाव पत्रकारिता (Journalism) की ओर हुआ।
★ पत्रकारिता की चाह
पत्रकार (Journalist) बनने की चाह में उन्होंने उस समय के प्रसिद्ध लेखक पंडित सुन्दर लाल के साथ वे हिंदी साप्ताहिक ‘कर्मयोगी’ के संपादन में उनकी सहायता करने लगे। कानपुर के करेंसी, पृथ्वीनाथ हाई स्कूल में अध्यापन के दौरान उन्होंने कर्मयोगी, सरस्वती, स्वराज्य (उर्दू) और हितवार्ता जैसे प्रकाशनों में लेख लिखे।
पत्रकारिता, सामाजिक कार्य (Social work) और स्वाधीनता आंदोलन (Independence movement) से जुड़ाव के दौरान उन्होंने ‘विद्यार्थी’ उपनाम को अपनाया।
उसी दौर में विद्यार्थी जी के लेखन ने हिंदी पत्रकारिता जगत के अगुआ पंडित महाबीर प्रसाद द्विवेदी का ध्यान अपनी ओर खींचा। द्विवेदी जी ने वर्ष 1911 में उन्हें अपनी साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ में उप-संपादक (Sub-editor) के पद पर कार्य करने का प्रस्ताव दिया, पर विद्यार्थी जी ने समाचार, सम-सामयिक और राजनीतिक विषयों में ज्यादा रुचि थी, इसलिए उन्होंने हिंदी साप्ताहिक ‘अभ्युदय’ में नौकरी कर ली।
वर्ष 1913 में विद्यार्थी जी कानपुर पहुंच गए और वहां उन्होंने एक क्रांतिकारी पत्रकार और स्वाधीनता कर्मी के तौर पर एक नया पत्रिका ‘प्रताप’ निकालकर उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया।
प्रताप के माध्यम से वह किसानों, पीड़ितों, मिल-मजदूरों और दबे-कुचले गरीबों का दुःख उजागर करने लगे, इन लोगों की मदद करने का नतीजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। अंग्रेज सरकार ने उनपर कई मुकदमे किए, विद्यार्थी जी पर भारी जुर्माना लगाया गया और कई बार उन्हें गिरफ्तार कर जेल भी भेजा।
★ गांधीजी से मुलाकात
कहते हैं की वर्ष 1916 में महात्मा गांधी से पहली मुलाकात के बाद गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने आप को पूर्णतया स्वाधीनता आन्दोलन में समर्पित कर दिया। उन्होंने वर्ष 1917 से 1918 में ‘होम रूल’ आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई और कानपुर में कपड़ा मिल मजदूरों की पहली हड़ताल का नेतृत्व भी किया। वर्ष 1920 में उन्होंने ‘प्रताप’ का दैनिक संस्करण निकालना शुरू कर दिया। इसी वर्ष विद्यार्थी जी को रायबरेली के किसानों की लड़ाई लड़ने के लिए 2 वर्ष के कठोर कारावास की सजा हुई।
साल 1922 में विद्यार्थी जी जेल से रिहा हुए पर सरकार ने उन्हें भड़काऊ भाषण देने के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिया। दो वर्ष बाद 1924 में उन्हें फिर से रिहा कर दिया गया, लेकिन तब तक उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ चुका था। कानपुर अधिवेशन में कांग्रेस के राज्य विधान सभा चुनावों (State legislative elections) में भाग लेने के फैसले के बाद गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने 1925 में कानपुर से ही उत्तरप्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए और वर्ष 1929 में पार्टी की मांग पर त्यागपत्र भी दे दिया।
★ कांग्रेस समिति के अध्यक्ष
वर्ष 1929 में ही उन्हें उत्तरप्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष चुना गया और राज्य में सत्याग्रह आन्दोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी दी गई। इस सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व करने के बाद 1930 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया, जिसके बाद विद्यार्थी जी की रिहाई गांधी-इरविन पैक्ट के बाद 9 मार्च, 1931 को हुई। विद्यार्थी जी को कानपुर शहर में हिंदू-मुस्लिम की साम्प्रदायिक दंगों की वजह से 25 मार्च, 1931 को अपनी जान गवानी पड़ी थी। लेकिन दंगा ही केवल उनकी मौत का कारण नहीं था।
बल्कि जब गणेश शंकर विद्यार्थी जी की कलम चलती थी, तो अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिल जाया करती थीं। विद्यार्थी जी और उनका अखबार ‘प्रताप’ आज भी पत्रकारों और पत्रकारिता के लिए आदर्श माने जाते हैं। भगत सिंह, सोहन लाल द्विवेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन, प्रताप नारायण मिश्र, सनेही जैसे तमाम देशभक्तों ने ‘प्रताप प्रेस’ की ज्वाला से राष्ट्र प्रेम को घर-घर तक पहुंचा दिया था।
गणेश शंकर विद्यार्थी जी एक निष्पक्ष पत्रकार, होने के साथ-साथ वे एक महान क्रांतिकारी, निडर, समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उनका नाम हमेशा के लिए अमर है। विद्यार्थी जी एक ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से भारत में अंग्रेजी शासन की नींदे उड़ा दी थी।
★ गणेश शंकर विद्यार्थी की मृत्यु?
भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने कलम और वाणी की ताकत के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसावादी विचारों और क्रांतिकारियों को समान रूप से समर्थन और सहयोग दिया। उन्होंने अपने छोटे जीवन-काल में उत्पीड़न, क्रूर व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई। उत्पीड़न और अन्याय की खिलाफत में हमेशा आवाज़ बुलंद करना ही उनके जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य था, चाहे वह नौकरशाह, जमींदार, पूंजीपति, उच्च जाति, संप्रदाय और धर्म की ही क्यों न हो। वह उसी के लिए जीए और उसी के लिए मरे।
ऐसे देशभक्त जिन्होंने अपने देश के लिए इतना कुछ किया, उनकी मृत्यु 25 मार्च 1931 को उत्तरप्रदेश के कानपुर में हिन्दू-मुस्लिम के दंगे को रोकने में दौरान हुई।
भारत के ऐसे वीर जो जाते-जाते भी देश के बारे में सोचते गए। ऐसे वीर को सत-सत नमन है। वो हमेशा हमलोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे।
★ गणेश शंकर विद्यार्थी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
1. गणेश शंकर विद्यार्थी का ‘प्रताप’ से क्या संबंध था?
> स्वतंत्रता आंदोलन के वक़्त ‘प्रताप’ एक पत्र था और गणेश शंकर विद्यार्थी उस पत्र के संचालक व सम्पादक दोनों थे।
2. गणेश शंकर के साहित्यिक गुरु कौन थे?
> पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी।
3. ‘प्रताप’ के सम्पादक कौन थे?
> प्रताप पत्रिका के सम्पादक गणेश शंकर विद्यार्थी थे।
4. प्रताप नामक समाचार पत्र का प्रकाशन कहाँ से हुआ?
> प्रताप नामक समाचार पत्र का प्रकाशन कानपुर से 9 नवम्बर, 1913 से प्रारम्भ हुआ।
5. गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रथम राजनीति गुरु कौन थे?
> लोकमान्य तिलक।
6. गणेश शंकर विद्यार्थी की रचनाएं?
> कर्मवीर महाराणा प्रताप, देवी जोन, महर्षि दादाभाई नौरोजी, महात्मा प्रिंस क्रोपटकिन, लेनिन, कर्मवीर गांधी, लोकमान्य की विजय, वज्रपात (देशबंधु दास)
7. गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या कैसे हुई?
> 25 मार्च, 1931 को दंगाइयों ने कानपुर के चौबे गोला चौराहे पर चाकू घोपकर गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या कर दी।
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