हेलो दोस्तों आज हमलोग एक ऐसे क्रांतिकारी के बारे में बाते करने वाले है जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह इन लोगों का पूरा-पूरा साथ दिया था, जिनका नाम है भगवतीचरण वोहरा।

नाम:- भगवतीचरण वोहरा
जन्म:- 4 जुलाई 1903
जन्म स्थान:- लाहौर
मृत्यु:- 28 मई 1930
मृत्यु स्थान:- रावी नदी तट
अभिभावक:- शिवचरण वोहरा
पति/पत्नी:- दुर्गा वोहरा
भगवतीचरण वोहरा का जन्म 4 जुलाई 1904 को लाहौर (पाकिस्तान) में हुआ था, जब वे बड़े हुए तो पंजाब में आकर रहने लगे थे।भगवतीचरण वोहरा की शिक्षा-दीक्षा लाहौर (पाकिस्तान) में हुयी थी। वे प्रकृति से विप्लवी (Insurgent) थे नियमों को तोड़कर चलने वाले थे। अत: वे शिक्षा-दीक्षा लेने की अवस्था में ही क्रांतिकारियों में सम्मिलित होकर देश की स्वतंत्रता के लिए कार्य करने लगे थे। पढ़ने की आयु में ही भगवतीचरण वोहरा का विवाह हो गया था। उनके पत्नी का नाम दुर्गा बोहरा था।
दुर्गा के पिताजी एक सन्यासी थे। दुर्गा के पिताजी ने भगवतीचरण वोहरा के साथ अपनी पुत्री का विवाह यह समझकर किया कि उनकी पुत्री उनके साथ सुख से रहेगी, पर जब उन्हें जब इस बात की जानकारी मिली कि भगवतीचरण का साथ क्रांतिकारियों का है, तो वह बहुत दुःखी हुए थे। पर इस बात को लेकर दुर्गा वोहरा को रंचमात्र भी दुःख नही था। क्योंकि दुःख के जगह पर उन्हें इस बात का अभिमान था क्योंकि उनके हृदय में भी देश के प्रति प्रगाढ़ (Deep) भक्ति थी।
दुर्गा वोहरा ने बड़ी अनन्यता के साथ अपने क्रांतिकारी पति का साथ दिया। एक समय ऐसा भी था जब उनका घर क्रांतिकारियों का अड्डा बना रहा था। वे क्रांतिकारियों के बीच में दुर्गा भाभी के नाम से जानी जाती थी। भगवतीचरण ने पढ़ाई छोड़ने के बाद देश के काम के अलावा और कोई काम नही किया। भगवतीचरण वोहरा ने दिल्ली, पंजाब और उत्तरप्रदेश में क्रांतिकारी दल का संघठन बड़े उत्साह और बड़ी लगन के साथ किया था। भगवतीचरण वोहरा चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह के दांये हाथ थे।
भगवतीचरण वोहरा ने अपने प्राणों की चिंता न करते हुए क्रांतिकारियों के लिए अपना घर खोल रखा था। उनके अनुसार कोई भी क्रांतिकारी कभी भी किसी भी समय उनके घर में जा सकता था रोटी खा सकता था और विश्राम कर सकता था। क्रांतिकारियों की बैठक भी प्राय: उन्हीं के घर में हुआ करती थी।
सन 1928 ई. में जब भारत में साइमन कमीशन का आगमन हुआ था तब कांग्रेस के निश्चय अनुसार पूरे देशभर में साइमन कमीशन का बहिष्कार किया गया। अक्टूबर में जब साइमन कमीशन लाहौर गया तो वहां भी उसके बहिष्कार के लिए एक बहुत बड़ा जुलुस निकाला गया था। लाहौर में उस जुलुस का नेतृत्व लाला लाजपतराय जी ने किया था। जुलुस जब लाहौर स्टेशन पर पहुंचा तो उस जुलूस को रोकने के लिए लालाजी और उनके साथियों पर घोड़े तो दौड़ाए ही गये उसके साथ-साथ उन सभी पे लाठियों की वर्षा भी की गयी। जिनके फलस्वरूप लाठी की चोट लालाजी को भी लगी और उनका देहांत हो गया।
लालाजी की मौत की खबर सुन पूरे देश में शोक का सागर उमड़ पड़ा। जहां-जहां शोक का सागर उमड़ा वहीं-वहीं असंतोष की आग भी जल उठी क्योंकि लालाजी की मृत्यु लाठियों की चोट की वजह से हुयी थी। क्रांतिकारियों का मन विक्षुब्ध (Disturbed) हो उठा। इन्हीं में थे चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह तथा राजगुरु आदि। उनलोगों ने पुलिस ऑफिसर सांडर्स को मार डालने की प्रतिज्ञा की जिसके आदेश पर लालाजी पर लाठी चलाई गयी थी।
उनलोगों ने सैंडर्स की हत्या की योजना तैयार की। उनलोगों ने 16 दिसम्बर की तारीख को शाम के वक़्त 4 से 5 के बीच में सैंडर्स की हत्या कर दी गयी। सैण्डर्स की हत्या के बाद बड़े जोरों-शोरों के साथ इन तीनों की गिरफ्तारी के लिए प्रयत्न किया जाने लगा, परन्तु अंग्रेज अफसरों द्वारा अधिक प्रयास करने पर भी तीनों क्रांतिकारियों में से किसी की भी गिरफ्तारी नही की जा सकी।
भगत सिंह, भगवतीचरण वोहरा और दुर्गा वोहरा एवं राजगुरु ने मिलकर लाहौर निकल जाने की एक योजना बनाई। इन लोगों द्वारा बनाये इस योजना के तहत भगत सिंह एक अमेरिकी साहब (American sir) के वेश में अपनी पत्नी और अर्दली के साथ रेलगाड़ी के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठकर लाहौर से कलकत्ता चले गये। भगत सिंह की पत्नी का वेश दुर्गा वोहरा ने और अरदली का रूप राजगुरु ने धारण किया था। चंद्रशेखर आजाद भी उसी गाड़ी से साधू के वेश में लाहौर से बाहर चले गये।
कहा जाता है कि रास्ते में किसी स्टेशन पर भगवतीचरण वोहरा ने भगत सिंह के डिब्बे के पास खड़े होकर अपनी पत्नी दुर्गा वोहरा से कहा था की “वास्तविक रूप में आज ही तुम्हारा मेरे साथ विवाह हुआ ”।
सैंडर्स की हत्या के बाद जब जोरों-शोरों से गिरफ्तारियां होने लगी तो भगवतीचरण वोहरा और दुर्गा वोहरा दोनों अदृश्य हो गये। दुर्गा वोहरा तो अमेरिकन स्त्री के वेश में भगत सिंह के साथ कलकत्ता चली गयी और भगवतीचरण वोहरा उत्तरप्रदेश की ओर चले गये थे। घटनाओं से पता चलता है कि दुर्गा वोहरा और राजगुरु कलकत्ता नही गए थे। कलकत्ता केवल भगत सिंह ही गये थे।
पुरे डेढ़ वर्ष तक भगत सिंह फरारी की स्थिति में इधर-उधर घूमते रहे। वे कहाँ-कहाँ गये थे और क्या-क्या करते रहे इस संबध में आज तक भी कुछ पता नही चल सका, बस केवल इतना ही कहा जा सकता था कि डेढ़ वर्ष तक वे प्राय: अदृश्य ही रहे। उधर भगतसिंह पहले तो कलकत्ता गये और फिर वहां से वे आगरा चले गये। आगरा में उन्होंने अपने साथियों से मिलकर दिल्ली के केन्द्रीय असेम्बली हॉल (Central Assembly Hall) में बम-विस्फोट करने की योजना बनाई।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की योजना के अनुसार 1929 के जून महीने में दिल्ली में केन्द्रीय असेम्बली हॉल (Central Assembly Hall) में विस्फोट किया, केंद्रीय असेम्बली हॉल में विस्फोट के फलस्वरूप भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार करके लाहौर जेल में भेज दिया गया। पहले उन लोगों को दिल्ली की जेल में रखा गया था उसके बाद फिर उन्हें लाहौर के मिंयावाली जेल में भेज दिया गया। सुखदेव, राजगुरु आदि को पहले ही गिरफ्तार करके मियावाली जेल में रखा गया था।
उस जेल में क्रांतिकारियों के साथ अच्छा व्यवहार नही किया जा सकता था। अतः उनलोगों ने अपनी कुछ मांगे सरकार के सामने रखी। सरकार जब उनकी मांगो पर ध्यान नही दे रहे थे तो उन्होंने भूख हड़ताल आरम्भ कर दिया। जिन दिनों अनशन चल रहा था, उन्हीं दिनों भगवतीचरण वोहरा, चंद्रशेखर आजाद ने मिलकर आपस में परामर्श करके भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की एक योजना बनाई।
भगवतीचरण वोहरा और चंद्रशेखर आजाद द्वारा बनाये इस योजना के तहत अनशन के कारण जब भगत सिंह को दुसरी जेल में ले जाया जाने लगे तो रस्ते में पुलिस की गाड़ी पर बम फेंकर उन्हें छुड़ा लिया जाए। कहा जाता है कि दुर्गा वोहरा ने भगत सिंह की चाची के वेश में दो-तीन बार जेल में जाकर उन्हें इन दोनों द्वारा बनाये इस योजना से अवगत कराया था।
भगत सिंह को छुड़ाने की योजना अच्छी तरह तैयार हो गयी, अब ये निश्चय किया गया कि बम का विस्फोट करने से पहले उस बम का परीक्षण कर लिया जाए। औए कही ऐसा न हो कि समय पर बम विस्फोट न हो और सारी योजना विफल हो जाए। 28 मई 1930 को भगवतीचरण वोहरा और चंद्रशेखर आजाद बम का परीक्षण करने के लिए रावी नदी के तट पर निर्जन स्थान पर गये।
चंद्रशेखर आजाद तो कुछ दूर बैठ कर इस बम का परीक्षण देख रहे थे, पर भगवतीचरण वोहरा हाथ में बम लेकर उसका परीक्षण करने लगे।
भगवतीचरण वोहरा ने कहा की “बम का कैप कुछ ढीला लग रहा है ”
वैशम्पायन बोले “लाओ मैं जरा इसे देख लू”
पर भगवतीचरण वोहरा बम वैशम्पायन की ओर बढ़ाते उसके पहले ही बम फट गया। और बड़े जोर से धमाका हुआ। भगवतीचरण वोहरा के दोनों हाथ कट गये और शरीर का भाग क्षत्त-विक्षत हो गया। वैशम्पायन और चंद्रशेखर आजाद वहां ठहर नही सके, क्योंकि बम के धमाके से वहां पुलिस के आने का डर था।
उन्होंने दुर्गा वोहरा के पास जाकर इस दुःखद घटना का समाचार सुनाया। यह खबर सुन दुर्गा वोहरा न तो रावी नदी के तट पर अपने मृत पति के शव के पास जा सकी और न अच्छी तरह रोकर अपने हृदय के दुःख को कम कर की।
देश के अहित की आशंका में दुर्गा वोहरा जी के हृदय को वज्र बना दिया। अपने आंसुओ को उन्होंने सुखाकर बर्फ की भाँती कठोर बना दिया। ऐसा सुनते है कि भगवतीचरण वोहरा के क्षत-विक्षत (mangled) शरीर को किसी अपरिचित मनुष्य ने रावी नदी की लहरों में प्रवाहित कर दिया। रावी नदी अपने वीर पुत्र भगवतीचरण वोहरा को अपनी गोद में लेकर पुलकित हो उठी।
भगवतीचरण वोहरा लखनऊ के काकोरी मामला, लाहौर षड्यंत्र केस और फिर लाला लाजपत राय को मारने वाले अंग्रेज सार्जेंट सांडर्स की हत्या में भी आरोपित थे। पर वो न तो कभी पकड़े गये और न ही क्रांतिकारी कार्यों को करने से कभी अपना पैर पीछे खीचा।