हेलो दोस्तों आज हमलोग भारत के ऐसे वीरांगना के बारे में बात करने वाले है जिन्होंने 1857 के संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दी थी। उस वीरांगना का नाम है अजीजन बाई।

नाम:- अजीजन बाई
अन्य नाम:- अंजुला
जन्म:- 22 जनवरी 1824
जन्म स्थान:- मालवा (मध्यप्रदेश) क्षेत्र के राजगढ़ में
मृत्यु:-
अभिभावक:- शमशेर सिंह
जाति:- ब्राह्मण
अन्य जानकारी:- 1857 की स्वतंत्रता सेनानी
भारत की आजादी की लड़ाई में भाग लेने वालों में उच्च, पिछड़े समाज और दलित समुदायों से आने वाली औरतों के अलावा बहुत सी सराय वालियां, तवायफों व नृर्तकियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। नृर्तकियों के तवायफखानों में भी स्वतंत्रता संग्राम की योजनाएं तैयार होती थी।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के बहादुरी के किस्से-कहानियां तो सभी जानते हैं क्योंकि वे एक रानी थी, लेकिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कुछ ऐसे भी लोग हुए हैं, जिनके योगदान को ज्यादा याद नहीं किया गया है। भारत की स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वालों में से ही एक नाम था अजीजन बाई का।
अजीजन बाई
वैसे तो वे पेशे से एक नर्तकी थी, लेकिन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रजों को लोहे के चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया था।
ब्राह्मण परिवार में हुआ था जन्म
अजीजन बाई के जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी तो उपलब्ध नहीं है लेकिन इतिहासकारों के अनुसार अजीजन बाई का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अजीजन बाई का जन्म 22 जनवरी 1824 को मध्यप्रदेश में मालवा क्षेत्र के राजगढ़ में एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
उनके पिता का नाम शमशेर सिंह था। अजीजन बाई के पिता एक बड़े जमींदार थे। अजीजन बाई बचपन से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तरह रहना पसंद करती थी और पुरुषों के लिबास पहनती थी। अजीजन बाई हमेशा अपने साथ एक बंदूक रखती और सैनिकों के साथ घोड़ें की सवारी भी करती थीं। इन सबके अलावा अजीजन बाई एक प्रसिद्ध नर्तकी थी। अजीजन बाई के सुरीले संगीत एवं नृत्य से हजारों युवक आकर्षित होते थे।
देश की नामी नर्तकी थी
अजीजन बाई का नाम उस वक़्त देश के प्रमुख नर्तकियों में आता था। उनके पास धन संपत्ति की कोई कमी नहीं थी। वो केवल एक साधारण नर्तकी ही बन कर रहना नहीं चाहती थी वह देश के लिए आजादी के आंदोलन में भी हिस्सा लेना चाहती थी।
प्रथम स्वाधीनता संग्राम की क्रांति की चिंगारी धीरे-धीरे बढ़ते हुए कानपुर तक भी दस्तक दे चुकी थी। अजीजन बाई के रूप में पहचानी जाने वाली इस नर्तकी ने भी सोचा कि देश खतरे में है, इसके लिए उन्हें भी कुछ करना चाहिए। तभी उन्होंने सोचा कि स्वतंत्रता संग्राम की इस लड़ाई में वो भी भाग लेगी और उन्होंने भी अपने गहने, धन-दौलत, अपनी सम्पति आदि क्रांति में पड़ने वाली सभी जरूरत की चीजें क्रांतिकारियों को प्रदान कर मातृभूमि में अपना योगदान करने की पूरी कोशिश की।
अजीजन बाई की “मस्तानी टोली”
अजीजन बाई ने स्वतंत्रता संग्राम की इस लड़ाई के लिए चकलो की लगभग सभी तवायफों का संगठन बनाकर उन्हें एकजुट किया। और अजीजन बाई ने अपने इस संगठन का नाम ‘मस्तानी टोली’ रखा। उस टोली में सम्मिलित स्त्रियाँ पुरुषों का भेष धारण करके तलवार लिए घोड़ों पर चढ़कर नवयुवकों को स्वतंत्रता संग्राम क्रांति में भाग लेने की प्रेरणा देती व निडरतापूर्व सशस्त्र जवानों का हौसला आफ़जाई करती थी।
1857 की क्रांति की लहर पूरे देश में धधक रही थी, तब मस्तानी टोली की सभी तवायफें अंग्रेजों की छावनी में भी नृत्य प्रदर्शन के लिए जाया करती थी। वो वहां की गुप्त सूचनाएं हासिल करती थी और इन जानकारियों को स्वतंत्रता सेनानियों तक पहुंचाया करती थी।
शक के दायरे में आने पर अंग्रेजों ने बिठुर में बहुत सारी औरतों और बच्चों को भी मार दिया। उनकी निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अजीजन बाई और मस्तानी टोली ने बीबी घर में सुरक्षित बहुत सारी अंग्रेज औरतों व बच्चों को मार कर कुएं में फेंक दिया था।
अपने औरतों और बच्चों की मौत की भनक जब अंग्रेजों को लगी तो उन्होंने सभी तवायफों के मोहल्ले को सैनिक टुकड़ी से घेर लिया और बहुत सारी तवायफों की हत्या कर दी थी और कई तवायफों को गिरफ्तार कर लिया था लेकिन वहां से भी अजीजन बाई फरार होने में सफल रही और नाना साहब पेशवा के वकील अजीमुल्ला खाँ के पास पहुंची, तब अजीमुल्ला खाँ ने ही अजीजन बाई को पहली बार नाना साहब और तात्या टोपे से मिलवाया था।
अजीजन बाई को बहन मानते थे नाना साहब
जब अजीजन बाई के बारे में नाना साहब ने सुना तो उन्हें लगा कि अजीजन बाई एक कुलीन परिवार से होने के बाबजूद मजबूरी में नर्तकी बनकर तवायफ का पेशा अपनायी हुई है, तब नाना साहब ने अजीजन बाई को अपनी बहन मान लिया।
नाना साहब ने अजीजन बाई को एक तलवार भेंट करते हुए राखी भी बंधवाई। इसके बाद अजीजन बाई अंजुला के नाम से पहचानी जाने लगी। उनकी सैनिक टुकड़ी मस्तानी टोली में 25 सदस्या थी, जो सभी पुरानी तवायफें ही थी।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के वक़्त बिठुर में संघर्ष के दौरान अंजुला (अजीजन बाई) अंग्रेज सैनिकों द्वारा गिरफ्तार कर ली गई। अंग्रेज अधिकारी अंजुला (अजीजन बाई) की सुंदरता और आवाज से प्रभावित थे। अंग्रेजों ने अंजुला के सामने शर्त रखी कि यदि वे स्वतंत्रता सेनानियों की योजनाओं के बारे में उन्हें बता देगी तो उन्हें माफी दे दी जाएगी। लेकिन अंजुला (अजीजन बाई) ने कोई भी जानकारी देने से साफ-साफ इनकार कर दिया।
इतना ही नहीं उस अंजुला (अजीजन बाई) ने हुंकार कर यह भी कहा कि माफी तो अंग्रेजों को मांगनी चाहिए, जिन्होंने भारतवासियों पर इतने जुल्म किए हैं। अंजुला ने ये भी कहा कि अंग्रेजों द्वारा किये इस अमानवीय कृत्य के लिए वह जीते जी उन्हें कभी माफ नहीं करेगी। ऐसा कहने का अंजाम भी उसे अच्छी मालूम था पर आजादी की उस दीवानी ने इसकी परवाह नहीं की।
एक नर्तकी से ऐसा जवाब सुनकर अंग्रेज अफसर तिलमिला गए और अंग्रेज अधिकारियों ने अंजुला (अजीजन बाई) को मार डालने का फरमान जारी कर दिया और देखते ही देखते अंग्रेज सैनिकों ने अंजुला (अजीजन बाई) के शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया था।
अजीजन बाई वो मरके भी अमर हो गई। आज भी जब देश के वीरांगनाओं के बारे में चर्चाएं होती है तो अजीजन बाई के बारे में जिक्र जरूर किया जाता है।