उधम सिंह – Udham Singh Biography In Hindi

वर्ष 1919 में बैसाखी का दिन था जब पंजाब के अमृतसर में हजारों की संख्या में लोग एक पार्क में जमा हुए थे। रॉलेट एक्ट के तहत कांग्रेस के सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू को अंग्रेजों ने अरेस्ट कर लिया था। लोग वहां दोनों की गिरफ्तारी के खिलाफ शांति से प्रोटेस्ट कर रहे थे। उस प्रोटेस्ट को रोकने के लिए जनरल डायर अपनी फौज के साथ वहां आ धमका और अपने फौज के साथ उसने पूरे बाग को घेर लिया। जनरल डायर ने न तो प्रदर्शनकारियों को जाने के लिए कहा और न ही उन्हें कोई वार्निंग दी।

डायर ने उस वक़्त बस एक काम किया अपनी फौज को प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग करने का आदेश दिया। फिर उस दिन उस बाग में शुरू हुआ नरसंहार। अंग्रेजों ने उस दिन उन मासूम लोगों पर दनादन गोलियां चलाई। उस दिन उस गोलीबारी में बहुत से लोगों की जानें गईं। बाग का इकलौता Exit gate (निकाष द्वार) अंग्रेजों ने बंद कर रखा था। लोग अपनी जान बचाने के लिए पार्क की दीवार पर चढ़ने लगे। कुछ लोग अपनी जान बचाने के लिए कुएं में कूद गए। अंग्रेजों द्वारा किये इस घिनोनें हरकत से सब गुस्साए बैठे थे।

उधम सिंह - Udham Singh Biography In Hindi

पर उस बाग में हुए इस घटना से एक इंसान था, जो इतना ज्यादा गुस्साया था कि उसने जनरल डायर को मार डालने का मन बना लिया। उस शख्स का नाम था सरदार उधम सिंह। आज हमलोग उधम सिंह की ज़िंदगी से जुड़े कुछ किस्सों पर नज़र डालेंगे।

पूरा नाम:- ऊधम सिंह

अन्य नाम:- राम मोहम्मद आज़ाद सिंह

जन्म:- 26 दिसंबर, 1899

जन्म भूमि:- सुनाम गाँव, पंजाब

पिता/माता:- तेहाल सिंह या तेजपाल सिंह

मृत्यु:- 31 जुलाई, 1940 (शहादत)

मृत्यु स्थान:- पेंटनविले जेल, ब्रिटेन

मृत्यु कारण:- फाँसी

नागरिकता:- भारतीय

प्रसिद्धि:- क्रान्तिकारी

आंदोलन:- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन

पुरस्कार-उपाधि:- ‘शहीद-ए-आज़म’ सरदार ऊधम सिंह

संबंधित लेख:- जलियाँवाला बाग़, ग़दर पार्टी, जनरल डायर

अन्य जानकारी:- इतिहासकार डॉ. सर्वदानंदन के अनुसार सरदार ऊधम सिंह ‘सर्व धर्म सम भाव’ के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आज़ाद सिंह रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।

★ जन्म से लेकर अनाथालय तक का सफर

सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। सरदार उधम सिंह के पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे। उधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह था। उधम सिंह के एक भाई भी थे जिनका नाम मुक्ता सिंह था। सात साल की उम्र में ही माता-पिता की मृत्यु के पश्चात उधम सिंह अनाथ हो गए। पहले उधम सिंह की मां का देहांत हो गया और उसके 6 साल बाद पिता।

 माता-पिता की मृत्यु के बाद उधम सिंह और उनके भाई को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में भेज दिया गया। अनाथालय में उन दोनों भाइयों को नया नाम मिला। शेर सिंह का नाम हो गया उधम सिंह और मुख्ता सिंह का नाम हो गया साधु सिंह। उधम सिंह ने भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था। जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।
वर्ष 1917 में साधु उर्फ मुक्ता सिंह की भी मौत हो गई। वर्ष 1918 में उधम सिंह ने मैट्रिक के एग्जाम पास किए। वर्ष 1919 में उन्होंने सेंट्रल खालसा अनाथालय को छोड़ दिया।


★ जलियांवाला बाग हत्याकांड और उनकी प्रतिज्ञा

उधम सिंह के सामने ही 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। उन्होंने अपनी आंखों से जनरल डायर की करतूत देखी थी। वे गवाह थे, उन हजारों भारतीयों की हत्या के, जो जालियांवाला बाग में जनरल डायर के आदेश पर गोलियों के शिकार हुए थे।
जलियांवाला बाग में वहां की मिट्टी हाथ में लेकर उधम सिंह ने जनरल डायर और तत्कालीन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ’ ड्वायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ली। इसके बाद से ही वो क्रांतिकारियों के साथ शामिल हो गए.

उधम सिंह क्रांतिकारियों से चंदा इकट्ठा कर देश के बाहर चले गए। उन्होंने जिम्बाब्वे, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा कर क्रांति के लिए बहुत सारे पैसे इकट्ठा किए।

इस बीच देश के बड़े क्रांतिकारी एक-एक कर अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी जान देते रहे। ऐसे में उनके लिए आंदोलन चलाना मुश्किल हो रहा था। पर वो अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए मेहनत करते रहे थे। उधम सिंह के लंदन पहुंचने से पहले जनरल डायर बीमारी के चलते मर गया था। ऐसे में उन्होंने अपना पूरा ध्यान माइकल ओ’ ड्वायर को मारने पर लगाया। और अपने सपने को उन्होंने पूरा भी किया।


★ भगत सिंह के फैन

सरदार उधम सिंह को भगत सिंह काफी पसंद थे। भगत सिंह के काम करने के तरीकों से उधम सिंह बहुत इंप्रेस थे। भगत सिंह को उधम सिंह अपना गुरु मानते थे। वर्ष 1935 में जब वो कश्मीर गए थे। वहां उधम सिंह को भगत सिंह के Portrait (चित्र) के साथ देखा गया। सरदार उधम सिंह को देशभक्ति गाने गाना बहुत अच्छा लगता था। वे राम प्रसाद बिस्मिल के भी फैन थे। कुछ महीनें कश्मीर में रहने के बाद वो विदेश चले गए।


★ ड्वायर की डेथ

उधम सिंह - Udham Singh Biography In Hindi

उधम सिंह जलियांवाला बाग नरसंहार से काफी आक्रोशित थे। जनरल डायर की वर्ष 1927 में Brain hemorrhage (मस्तिष्क में रक्त स्त्राव) से मौत हो चुकी थी। ऐसे में उधम सिंह के आक्रोश का निशाना बना उस नरसंहार के वक़्त पंजाब का गवर्नर रहा Michael Frencise O ‘Dwire। जिसने जालियांवाला बाग नरसंहार को उचित ठहराया था। 13 मार्च 1940 को Royal Central Asian Society (रॉयल मध्य एशियाई समाज) की लंदन के काक्सटन हॉल में बैठक थी। वहां Michael Frencise O ‘Dwire भी Speakers (वक़्ता) में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से वहां पहुंच गए।

अपनी पिस्तौल सरदार उधम सिंह ने एक मोटी किताब में छिपा रखी थी। पता है कैसे? उधम सिंह ने किताब के पन्नों को पिस्तौल के आकार में काट लिया था और उस किताब को बक्से जैसा बनाया था। उससे उनको किताब में पिस्तौल छिपाने में आसानी हुई। बैठक  खत्म होने के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए सरदार उधम सिंह ने माइकल ओ’ ड्वायर को निशाना बनाया। उधम सिंह की चलाई हुई दो गोलियां जैसे ही ड्वायर को लगी वैसे ही उसकी तुरंत मौत हो गई। इसके साथ ही सरदार उधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की और पूरी दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी छोड़ा नहीं करते।

ड्वायर को मारने के बाद सरदार उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और गिरफ्तार हो गए। उन पर मुकदमा चला और कोर्ट में उनकी पेशी हुई। कोर्ट में जज ने उधम सिंह से सवाल पूछा कि वह ओ’ ड्वायर के अलावा उसके दोस्तों को क्यों नहीं मारा। तब सरदार उधम सिंह ने यह जवाब दिया कि वहां पर ड्वायर के अलावा कई औरतें थीं और हमारी संस्कृति में नारियों पर हमला करना पाप है।
इसके बाद ही सरदार उधम सिंह को शहीद-ए-आजम की उपाधि दी गई, जो सरदार भगत सिंह को उनकी शहादत के बाद मिली थी।

★ मरने की कहानी

कोर्ट द्वारा 4 जून, 1940 को सरदार उधम सिंह को ड्वायर की हत्या का दोषी ठहराया गया। और 31 जुलाई, 1940 को उन्हें Pantanville jail (पंतनविले जेल) में फांसी दे दी गई। इस तरह सरदार उधम सिंह भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में अमर हो गए। साल 1974 में ब्रिटेन ने उधम सिंह के अवशेष भारत को सौंप दिए। अंग्रेजों को उनके घर में घुसकर मारने का जो काम उधम सिंह ने किया था, उसकी हर जगह तारीफ हुई। यहां तक कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी उनके द्वारा किये हुए इस काम की तारीफ की। पंडित नेहरू ने कहा कि माइकल ओ’ ड्वायर की मौत का अफसोस तो है, पर ये भी बेहद जरूरी था। सरदार उधम सिंह द्वारा किये गए इस घटना ने देश के अंदर क्रांतिकारी गतिविधियों को एकाएक तेज कर दिया। सरदार उधम सिंह की यह कहानी आंदोलनकारियों को हमेशा प्रेरणा देती रही है। इसके बाद की तमाम घटनाओं को सभी जानते हैं। इसके बाद अंग्रेजों को 7 साल के अंदर ही देश छोड़ना पड़ा और हमारा देश आजाद हो गया। भले ही उधम सिंह जीते जी आजाद भारत में सांस न ले सके, पर करोड़ों हिंदुस्तानियों के दिल वो आज भी जिंदा है और करोड़ों हिंदुस्तानियों के दिल में रहकर वो आजादी को जरूर महसूस कर रहे होंगे।

Leave a Comment