Introduction
भारत की भूमि हमेशा से ही वीरों की जननी रही है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम यानी भारत को स्वतंत्र कराने में ऐसे कई वीर हुए जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में अपनी जान की भी परवाह नहीं की। ऐसे ही एक वीर थे जिन्हें शेर-ए-पंजाब के नाम से जाना जाता है जिनका नाम है लाला लाजपत राय।
लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (Indian freedom struggle) के महान सेनानी थे, जिन्होंने देश सेवा के लिए अपने प्राणों की आहुति भी दे दी और अपने जीवन का एक-एक कतरा अपने भारत देश के नाम कर दिया।

पूरा नाम:- लाला लाजपत राय
अन्य नाम:- लालाजी
जन्म:- 28 जनवरी, 1865
जन्म भूमि:- फ़रीदकोट ज़िला, पंजाब
अभिभावक:- लाला राधाकृष्ण अग्रवाल, गुलाब देवी अग्रवाल
नागरिकता:- भारतीय
प्रसिद्धि:- स्वतंत्रता सेनानी
पार्टी:- कांग्रेस
शिक्षा:- वक़ालत
विद्यालय:- राजकीय कॉलेज, लाहौर
जेल यात्रा:- असहयोग आंदोलन के दौरान 1921 में
मृत्यु:- 17 नवंबर, 1928
मृत्यु स्थान:- लाहौर, अविभाजित भारत
विशेष योगदान:- पंजाब के ‘दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज’ (डी.ए.वी. कॉलेज) की स्थापना
संबंधित लेख:- बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल
रचनाएँ:- ‘पंजाब केसरी’, ‘यंग इंण्डिया’, ‘भारत का इंग्लैंड पर ऋण’, ‘भारत के लिए आत्मनिर्णय’, ‘तरुण भारत’।
अन्य जानकारी:- लालाजी ने अमरीका के न्यूयॉर्क शहर में अक्टूबर, 1917 में ‘इंडियन होमरूल लीग ऑफ़ अमेरिका’ नाम से एक संगठन की स्थापना की थी। 20 फरवरी, 1920 को लालाजी जब भारत लौटे, उस समय तक वे देशवासियों के लिए एक नायक बन चुके थे।
★ लाला लाजपत राय का जीवन
लाला लाजपत राय जी का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के मोगा ज़िले में हुआ था। लालाजी के पिता का नाम लाला राधाकृष्ण अग्रवाल तथा माता का नाम गुलाब देवी अग्रवाल था। राधाकृष्ण अग्रवाल जी पेशे से अध्यापक और उर्दू के प्रसिद्ध लेखक थे। शुरुआत से ही लाजपत राय लेखन और भाषण में बहुत रुचि लेते थे। लाला जी ने हिसार और लाहौर में वकालत शुरू की। लाला जी को शेर-ए-पंजाब का सम्मानित संबोधन देकर लोग उन्हे गरम दल (Hot team) का नेता मानते थे। लाला लाजपतराय स्वावलंबन (Swavalamban) से स्वराज्य (Self-governing) लाना चाहते थे।
सन 1897 और 1899 में देश में आए अकाल में पीड़ितों की लाला जी ने तन, मन और धन से सेवा की। देश में आए अकाल, भूकंप के समय ब्रिटिश शासन (British rule) ने कुछ भी नहीं किया। लेकिन लाला लाजपतराय जी ने स्थानीय लोगों (Local people) के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर (Camp) लगाकर लोगों की सेवा की।
इसके बाद जब सन 1905 में बंगाल का विभाजन किया गया था, तो लालाजी ने विपिनचंद्र पाल और सुरेंद्रनाथ बनर्जी जैसे आंदोलनकारियों (Agitators) से हाथ मिला लिया और अंग्रेजों के इस फैसले का जमकर विरोध किया। पूरे देश में लालाजी ने स्वदेशी आंदोलन को चलाने और उसे आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।
कुछ समय बाद लालाजी इतने लोकप्रिय हो गए कि उनकी लोकप्रियता से अंग्रेज भी डरने लगे। इसी कारण सन् 1914 से 20 तक लालाजी को भारत आने की इजाजत नहीं दी गई। प्रथम विश्वयुद्ध (First World War) में भारत से सैनिकों की भर्ती के वे विरोधी थे।
अंग्रेजों के जीतने पर उन्होंने यह अपेक्षा नहीं की कि वे गांधीजी की भारत स्वतंत्र करने की मांग स्वीकार कर लेंगे। अंग्रेज सरकार जानती थी कि लाल (लाला लाजपतराय), बाल (बाल गंगाधर तिलक) और पाल (विपिन चन्द्र पाल) ये तीनों इतने प्रभावशाली व्यक्ति हैं कि जनता उनका अनुसरण करती है।
अंग्रेजों ने अपने को सुरक्षित रखने के लिए जब लालाजी को भारत नहीं आने दिया तो लालाजी अमेरिका चले गए। अमेरिका जाकर लालाजी ने ‘Young India’ पत्रिका का उन्होंने संपादन-प्रकाशन किया। न्यूयार्क (New York) में Indian Information Bureau (भारतीय सूचना ब्यूरो) की स्थापना की। इसके अलावा दूसरी संस्था India Home Rule की भी स्थापना की।
वर्ष 1920 में जब लालाजी भारत आए तब तक तो उनकी लोकप्रियता आसमान पर जा चुकी थी। इसी वर्ष लालाजी कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में गांधीजी के संपर्क में आए और असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए।
लाला लाजपतराय के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन पंजाब में जंगल की आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे पंजाब का शेर और पंजाब केसरी जैसे नामों से पुकारे जाने लगे। लाला लाजपतराय जी ने अपना सर्वोच्च बलिदान साइमन कमीशन के वक़्त दिया।
★ लाला लाजपतराय द्वारा साइमन कमीशन का विरोध
30 अक्टूबर, 1928 को इंग्लैंड के प्रसिद्ध वकील Sir John Simon (सर जॉन साइमन) की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय आयोग (Seven member commission) लाहौर आया। उस आयोग के सभी सदस्य अंग्रेज थे। सम्पूर्ण भारत में भी इस कमीशन का विरोध हो रहा था।
लाहौर में भी इस आयोग का विरोध करने का निर्णय हुआ। लाहौर महानगर बंद था, चारों तरफ काले झंडे (Black Flag) दिख रहे थे और हर तरफ से जोर-जोर से आवाज़ आ रही थी ‘Simon Commission Go Back, इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे सुनाई दे रहे थे।
लाला लाजपत राय जी के नेतृत्व में बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष हर कोई स्टेशन की तरफ बढ़ते जा रहे थे। अंग्रेजों की नजर में यह देशभक्तों का गुनाह था।
साइमन कमीशन का विरोध करते हुए उन्होंने Go Back To British ‘अंग्रेजों वापस जाओ’ का नारा दिया था। और साइमन कमीशन का उन्होंने डटकर विरोध भी जताया। इसके जवाब में अंग्रेजों ने उन सभी देशभक्तों पर लाठी चार्ज किया। लालाजी अपने ऊपर हुए प्रहार के बाद कहा कि उनके जिस्म (शरीर) पर लगी एक-एक लाठी अंग्रेजी साम्राज्य (British Empire) के लिए कफन साबित होगी।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी साम्राज्य का मुकाबला करते हुए अपने प्राणों तक की बाजी दी। अपने अंतिम भाषण में लालाजी ने कहा, ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में कील का काम करेगी’ और लालाजी पर लगे इस चोट ने कितने ही ऊधमसिंह और भगतसिंह तैयार कर दिए, और उन्हीं लोगों के प्रयत्नों से हमें आजादी मिली।
अंग्रेजों की लाठियों और चोटों की वजह से 17 नवम्बर, 1928 को लालाजी का देहान्त हो गया। इस देश ने लाला लाजपत राय के रूप में एक ऐसा नेता खो दिया था, जो ना सिर्फ युवाओं को संगठित कर सकते थे बल्कि उनसे काम निकालने के सभी गुण उनमे थे, जैसे वह गरम दल के होने के बाद भी गांधीजी के प्रिय थे।
शांति और शक्ति दोनों से वह काम निकालना जानते थे। लाला लाजपतराय की शहादत बर्बाद नहीं गई और ना ही उनके कातिल अधिक दिन तक जी पाए। लालाजी की मृत्यु के एक महीने पश्चात ही 17 दिसंबर, 1928 को ब्रिटिश पुलिस अफसर जे.पी साण्डर्स को सुखदेव, भगतसिंह और राजगुरु ने गोली से उड़ा दिया।